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सांविधानिक विधि

अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य

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 21-Jun-2024

प्रेम चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

क्षेत्रीय गाँधी आश्रम, मेरठ भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य नहीं है क्योंकि राज्य के पास आश्रम के कार्यों का विनियमन करने या इसके मामलों को नियंत्रित करने के लिये अधिकार देने वाला कोई विधान नहीं है”।

न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, प्रेम चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि क्षेत्रीय गाँधी आश्रम, मेरठ, भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत 'राज्य' नहीं है, क्योंकि राज्य के पास आश्रम के कार्यों को विनियमित करने या इसके मामलों को नियंत्रित करने का अधिकार देने वाला कोई विधान नहीं है।

प्रेम चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता को क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, गढ़ रोड, मेरठ में पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था और सचिव, क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ द्वारा पारित आदेश से श्री गाँधी आश्रम, खादी भंडार, बड़ौत, ज़िला बागपत में स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता का कहना है कि वह क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम कर्मचारी संघ, मेरठ का निर्वाचित सचिव भी था।
  • याचिकाकर्त्ता ने यूनियन बैंक और केनरा बैंक, जहाँ क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ के बैंक खाते हैं, के शाखा प्रबंधक के समक्ष दिनांक 8 सितंबर 2023 को एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ की ओर से रेणुका आशियाना प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में ज़ाली बिक्री विलेख निष्पादित करने के अतिरिक्त क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ द्वारा धन के दुरुपयोग के विषय में भी शिकायत दर्ज कराई गई।
  • शिकायत की जाँच की गई तथा क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ के बैंक खातों का संचालन रोक दिया गया।
  • याचिकाकर्त्ता को क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ के सचिव द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए शिकायत वापस लेने के लिये कहा गया।
  • क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ के सचिव ने बिना कोई जाँच किये 16 सितंबर 2023 को याचिकाकर्त्ता को पदच्युत करने का आदेश पारित किया।
  • 25 सितंबर 2023 के एक अन्य आदेश द्वारा याचिकाकर्त्ता को क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ के कर्मचारी के रूप में उसे आवंटित आवास का कब्ज़ा सौंपने के लिये कहा गया है।
  • इसके उपरांत याचिकाकर्त्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
  • प्रतिवादी के अधिवक्ता ने याचिका की स्वीकार्यता के विषय में प्रारंभिक आपत्ति की। यह तर्क दिया गया कि क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम एक पंजीकृत सोसायटी होने के कारण राज्य का अंग नहीं है।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका अस्वीकार कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर ने कहा कि क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, मेरठ का मूल निकाय श्री गाँधी आश्रम, संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य नहीं है, क्योंकि राज्य का इसकी कार्यपद्धति पर कोई वैधानिक नियंत्रण नहीं है, अतः आश्रम के विरुद्ध कोई रिट स्वीकार्य नहीं है।
  • न्यायालय ने सुरेश राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2005) के मामले में दिये गए निर्णय का उद्धरण दिया जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह तय करते समय विचार किये जाने वाले 6 कारक निर्धारित किये थे कि क्या सहकारी समिति, संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत 'राज्य' है। ये कारक निम्नवत हैं:
    • यदि निगम की सम्पूर्ण शेयर पूँजी सरकार के पास है, तो इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि निगम सरकार का एक साधन या एजेंसी है।
    • जहाँ राज्य द्वारा दी गई वित्तीय सहायता इतनी अधिक है कि निगम का लगभग सारा व्यय पूर्ण हो जाता है, तो इससे यह संकेत मिलता है कि निगम में सरकारी चरित्र निहित है।
    • यह भी एक प्रासंगिक कारक हो सकता है कि क्या निगम को, राज्य द्वारा प्रदत्त या राज्य द्वारा संरक्षित एकाधिकार प्राप्त है।
    • राज्य द्वारा गहन एवं व्यापक नियंत्रण का अस्तित्त्व इस बात का संकेत दे सकता है कि निगम, राज्य की एजेंसी या साधन है।
    • यदि निगम के कार्य सार्वजनिक महत्त्व के हैं और सरकारी कार्यों से निकटता से संबंधित हैं, तो निगम को सरकार के साधन या एजेंसी के रूप में वर्गीकृत करने में यह एक प्रासंगिक कारक होगा।
    • विशेष रूप से, यदि सरकार का कोई विभाग, किसी निगम को हस्तांतरित कर दिया जाता है, तो यह निगम के सरकार का एक साधन या एजेंसी होने के अनुमान को समर्थन देने वाला एक प्रासंगिक कारक होगा।

संविधान  के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य क्या है?

राज्य का अर्थ:

  • अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि जब तक इस संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, राज्य में भारत की सरकार और संसद तथा प्रत्येक राज्य की सरकार तथा विधानमंडल तथा भारत के क्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण में सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी शामिल हैं।
  • राज्य की परिभाषा समावेशी है और इसके प्रावधान के अनुसार, राज्य में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • भारत सरकार और संसद अर्थात् संघ की कार्यपालिका तथा विधायिका।
    • प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल अर्थात् भारत के विभिन्न राज्यों की कार्यपालिका तथा विधानमंडल।
    • भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण।

भारत सरकार और संसद:

  • राज्य शब्द में भारत सरकार अर्थात् संघीय कार्यपालिका और भारत की संसद शामिल हैं।
  • इस शब्द में सरकार का कोई विभाग या सरकार के किसी विभाग के नियंत्रण में कोई संस्थान शामिल है, जैसे- आयकर विभाग इत्यादि।
  • राष्ट्रपति को अपनी आधिकारिक क्षमता में कार्य करते समय इस शब्द के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये तथा उसे राज्य माना जाना चाहिये।

प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल:

  • राज्य शब्द में प्रत्येक राज्य की सरकार अर्थात् राज्य कार्यपालिका और प्रत्येक राज्य की विधायिका अर्थात् राज्य विधानमंडल शामिल हैं।
  • इसमें केंद्रशासित प्रदेश भी शामिल हैं।

भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर स्थानीय या अन्य प्राधिकारी:

  • स्थानीय प्राधिकरण शब्द को सामान्य खंड अधिनियम, 1897 की धारा 3(31) में परिभाषित किया गया है, स्थानीय प्राधिकरण का अर्थ नगरपालिका समिति, ज़िला बोर्ड, आयुक्त निकाय या अन्य प्राधिकरण होगा जो नगरपालिका या स्थानीय निधि के नियंत्रण या प्रबंधन के अंतर्गत सरकार द्वारा विधिक रूप से अधिकृत या सौंपा गया हो।
  • स्थानीय प्राधिकरण शब्द का तात्पर्य आमतौर पर नगर पालिकाओं, जिला बोर्डों, पंचायतों, खनन निपटान बोर्डों आदि जैसे प्राधिकरणों से होता है। राज्य के अधीन काम करने वाला, राज्य के स्वामित्व वाला, नियंत्रित और प्रबंधित तथा सार्वजनिक कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति स्थानीय प्राधिकरण है व राज्य की परिभाषा के अंतर्गत आता है।
  • अन्य प्राधिकरण शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। अतः इसकी व्याख्या करने में काफी कठिनाई हुई है और समय के साथ न्यायिक स्थिति में भी परिवर्तन हुए हैं।
  • भारत संघ बनाम आर.सी. जैन (1981) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित करने के लिये मानदंड निर्धारित किये कि संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य की परिभाषा के अधीन किन निकायों को स्थानीय प्राधिकरण माना जाएगा। न्यायालय ने कहा कि यदि कोई प्राधिकरण:
    • इसका अलग विधिक अस्तित्व हो
    • एक निर्धारित क्षेत्र में कार्य करता हो
    • अपने आप धन जुटाने की शक्ति रखता हो
    • स्वायत्त अर्थात् स्वशासित हो
    • यदि किसी प्राधिकरण को विधि द्वारा वे कार्य सौंपे जाते हैं जो सामान्यतः नगर पालिकाओं को सौंपे जाते हैं, तो ऐसे प्राधिकरण 'स्थानीय प्राधिकरण' के अंतर्गत आएंगे और इसलिये COI के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य होंगे।

कोई निकाय अनुच्छेद 12 के अंतर्गत आता है या नहीं:

  • आर.डी. शेट्टी बनाम एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (1979) में न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती ने 5 पॉइंट टेस्ट दिया था। यह टेस्ट यह निर्धारित करने के लिये है कि कोई निकाय राज्य की एजेंसी या साधन है या नहीं तथा यह निम्न प्रकार है–
    • राज्य के वित्तीय संसाधन, जहाँ राज्य ही मुख्य वित्तपोषण स्रोत है, अर्थात् संपूर्ण शेयर पूंजी सरकार के पास है।
    • राज्य का गहन एवं व्यापक नियंत्रण।
    • इसका कार्यात्मक चरित्र मूलतः सरकारी है, जिसका अर्थ है कि इसके कार्यों का सार्वजनिक महत्त्व है या वे सरकारी प्रकृति के हैं।
    • सरकार का एक विभाग निगम को हस्तांतरित कर दिया गया।
    • राज्य द्वारा प्रदत्त या संरक्षित एकाधिकार का दर्जा प्राप्त है।
  • यह बात इस कथन के साथ स्पष्ट की गई कि यह टेस्ट केवल उदाहरणात्मक है तथा इसकी प्रकृति निर्णायक नहीं है एवं इसे बहुत सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिये।

क्या राज्य में न्यायपालिका शामिल है:

  • संविधान का अनुच्छेद 12 न्यायपालिका को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता है तथा इस मामले पर बड़ी संख्या में असहमति है।
  • न्यायपालिका को पूर्णतः अनुच्छेद 12 के अंतर्गत लाने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि इसके साथ यह निष्कर्ष जुड़ा है कि हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षक स्वयं ही उनका उल्लंघन करने में सक्षम है।
  • हालाँकि, रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002) में, उच्चतम न्यायालय ने पुनः पुष्टि की और निर्णय दिया कि किसी भी न्यायिक कार्यवाही को किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने वाला नहीं कहा जा सकता है तथा यह विधि की एक स्थापित स्थिति है कि उच्चतर न्यायालय अनुच्छेद 12 के अधीन राज्य या अन्य प्राधिकारियों के दायरे में नहीं आती हैं।

निर्णयज विधियाँ:

  • मद्रास विश्वविद्यालय बनाम शांता बाई (1950) में, मद्रास उच्च न्यायालय ने ‘एजुस्डेम जेनेरिस’ यानी समान प्रकृति के सिद्धांत को विकसित किया। इसका अर्थ है कि केवल वे प्राधिकरण ही ‘अन्य प्राधिकरण’ अभिव्यक्ति के अंतर्गत आते हैं जो सरकारी या संप्रभु कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, इसमें व्यक्ति, प्राकृतिक या न्यायिक, उदाहरण के लिये, गैर-सहायता प्राप्त विश्वविद्यालय शामिल नहीं हो सकते।
  • उज्जम्माबाई बनाम यूपी राज्य (1961) में, उच्चतम न्यायालय ने उपरोक्त प्रतिबंधात्मक विस्तार को अस्वीकार कर दिया और माना कि अन्य प्राधिकारियों की व्याख्या करने में ‘एजुस्डेम जेनेरिस’ नियम का सहारा नहीं लिया जा सकता। अनुच्छेद 12 के अधीन नामित निकायों में कोई समानता नहीं है और उन्हें किसी भी तर्कसंगत आधार पर एक ही श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।